पूर्णिया में जिला स्तरीय ‘फ़रोग-ए-उर्दू’ सेमिनार, मुशायरा और कार्यशाला का भव्य आयोजन
पूर्णिया
उर्दू निदेशालय, मंत्रिमंडल सचिवालय विभाग, बिहार एवं जिला प्रशासन, पूर्णिया के संयुक्त तत्वावधान में सोमवार को आर्ट गैलेरी सह प्रेक्षागृह, पूर्णिया में जिला स्तरीय ‘फ़रोग-ए-उर्दू’ सेमिनार, मुशायरा और कार्यशाला का भव्य आयोजन हुआ।
कार्यक्रम का उद्घाटन जिला पदाधिकारी अंशुल कुमार, ने दीप प्रज्वलित कर किया। इस अवसर पर उन्होंने ‘जिला उर्दू नामा 2025-26’ का विमोचन भी किया।
उर्दू भाषा हमारी साझा सांस्कृतिक धरोहर : डीएम
अपने उद्घाटन संबोधन में डीएम अंशुल कुमार ने कहा, “उर्दू सिर्फ़ एक भाषा नहीं, बल्कि हमारी साझा सांस्कृतिक धरोहर है, जो समाज को जोड़ने का कार्य करती है। इसकी मिठास और साहित्यिक गहराई बेमिसाल है। यह किसी व्यक्ति या समुदाय विशेष की नहीं, बल्कि सबकी भाषा है।” उन्होंने कहा कि बिहार सरकार और उर्दू निदेशालय बच्चों के लिए निबंधन एवं अन्य रचनात्मक कार्यक्रमों के माध्यम से उर्दू के विकास के लिए निरंतर प्रयासरत है।
साहित्यिक सत्र से लेकर मुशायरे तक छाया रहा उर्दू का रंग
कार्यक्रम तीन सत्रों में विभाजित था। पहले सत्र में डॉ. अब्दुल मन्नान, एहसान कासमी और तौसीफ अनवर सहित प्रख्यात विद्वानों ने उर्दू भाषा के महत्व और साहित्यिक योगदान पर आलेख प्रस्तुत किए। शब्बीर आलम, अब्दुल कययूम अंसारी (सचिव, अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू बिहार), डॉ. मुनीर आलम और प्रो. प्रमोद भारतीय ने उर्दू साहित्य एवं संस्कृति की विविधताओं पर विचार रखे।
मुशायरे में श्रोता हुए मंत्रमुग्ध
दूसरे सत्र के मुशायरे में शायर शंकर कैमूरी, मेकश आज़मी समेत कई प्रतिष्ठित कवियों ने अपने कलाम से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। तीसरे सत्र की कार्यशाला में विभिन्न प्रखंडों से आए शिक्षकों ने भाग लिया, जिसका उद्देश्य उर्दू शिक्षा को प्रोत्साहित करना और इसे एक सशक्त संवाद माध्यम के रूप में स्थापित करना था।
उर्दू कर्मियों की सक्रिय भूमिका
कार्यक्रम का मंच संचालन उर्दू अनुवादक वसीम अहमद और अर्शी ख़ातून ने संयुक्त रूप से किया। सहायक उर्दू अनुवादक अब्दुल गनी सहित कई उर्दू कर्मियों ने आयोजन को सफल बनाने में अहम योगदान दिया।
इस आयोजन ने न केवल उर्दू भाषा एवं साहित्य की समृद्ध परंपरा को पुनः जीवंत किया, बल्कि इसे अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाने के लिए सतत प्रयास की आवश्यकता पर भी बल दिया।