सुपौल।

सावन आते ही मिथिला में विभिन्न पर्व त्योहारों का दौर शुरू हो जाता है ।ऐसा ही महत्वपूर्ण लोक पर्व है मधुश्रावणी। यह पर्व मिथिला की अनेक सांस्कृतिक विशिष्ठाओं में एक है ।इस त्यौहार को नवविवाहिताएं अत्यधिक आस्था और उल्लास के साथ मनाती हैं। संपूर्ण मिथिला क्षेत्र में नव विवाहिताओं द्वारा यह व्रत अपने सुहाग की रक्षा एवं ग्रीहस्थाश्रम धर्म में मान, सम्मान, मर्यादाओं के साथ जीवन निर्वाह हेतु मनाया जाता है। वैदिक काल से ही मिथिला में ऐसी मान्यता है कि, पवित्र श्रावण मास में निष्ठा पूर्वक नाग देवता का पूजन करने से दंपति की जीवन की आयु लंबी होती है। यह कहना है गोसपुर ग्राम निवासी पंडित आचार्य धर्मेंद्र नाथ मिश्र का। उन्होंने मधुश्रावणी व्रत एवं पूजन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि 15 दिनों तक चलने वाला या व्रत पूजन टेमी दागने की क्रिया के साथ विश्राम होता है। इस बार यह मधुश्रावणी व्रत 15 जुलाई दिन मंगलवार से आरंभ होगी तथा 27 जुलाई को मधुश्रावणी व्रत विश्राम होगी। इसी दिन महिलाओं के लिए स्वर्ण गौरी व्रत भी होगी। जिस दिन मधुश्रावणी व्रत होगा उसी दिन मोना पंचमी मनसा देवी पूजन के साथ साथ नाग पूजन भी संपन्न किया जाता है। यह पंद्रह दिनों तक चलने वाले पूजन नव दंपतियों के लिए एक तरह से मधुमास है ।इस पर्व में भगवान गौरी शंकर की पूजा तो होती ही है साथ में विषहरी एवं नाग नागिन की भी पूजा होती है ।नाग देवता के पूजन से काल का भय तथा वास्तु दोष जीवन में नहीं होता है ।प्राचीन प्रथा यह भी है कि इन दोनों नव विवाहिताओ को ससुराल से आए हुए कपड़े गहने ही पहनती है और भोजन फलाहार इत्यादि भी वहीं से भेजे गए अन् इत्यादि करती हैं ।पहले और अंतिम दिन की पूजा बड़े विस्तार से होती है। पूजन उपरांत विशिष्ट ज्ञानी महिलाओं के द्वारा मधुश्रावणी व्रत कथा सुनाई जाती है ,जिसमें शंकर पार्वती के चरित्र के माध्यम से पति-पत्नी के बीच होने वाली बातें, नोंकये–झोक, रूठना– मनाना, प्रेम इत्यादि की कथा सुनाई जाती है ताकि नव विवाहिताए हर परिस्थितियों में धैर्य रखकर सुख सुख शांति से जीवन बिता सके।पूजन के अंत में नव विवाहिता सभी सुहागिनों को अपने हाथों से खीर का प्रसाद एवं पीसी हुई मेहंदी लगाती है ।अंतिम दिन चार स्थानों पर नव विवाहिताओं को टेमी से दागे जाते हैं,जिससे चार पुरुषार्थ या चार प्रकार के फल धर्म, अर्थ, काम मोक्ष की प्राप्ति होती है।